चार साल बाद भी पकड़ से दूर ९ बंदी
चित्तौडग़ढ़ जेल से वर्ष 2010 में एक साथ भागे थे 23 बंदी, दो साल पहले तक पकड़ाए 12 बंदी, दो की मौत
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राकेश पाराशर क्च चित्तौडग़ढ़ करीब चार साल पहले चित्तौडग़ढ़ जिला जेल से एक साथ फरार हुए 23 कैदियों में से नौ कैदियों को पुलिस अब तक नहीं ढूंढ पाई है। अब ये कैदी पुलिस की नजरों व पकड़ से दूर हो चुके हैं, वहीं खुद पुलिस भी इन्हें ढूंढने में सुस्त हो चुकी है। 18 फरवरी 2010 की सुबह भीलवाड़ा मार्ग स्थित जिला जेल से प्रहरियों से मारपीट कर 23 कैदी एक साथ फरार हो गए थे। इसके बाद पुलिस ने एक-एक कर 12 कैदियों को गिरफ्तार कर लिया। इस बीच दो कैदियों की बीमारी व दुर्घटना में मौत हो गई। 23 में से नौ कैदी अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं। इन नौ में से दो कैदी बेगूं थाना क्षेत्र के ही हैं। अन्य फरार कैदियों में राज्य के अजमेर, जालौर, नागौर व जोधपुर जिले के अलावा हरियाणा, उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश के कैदी भी हैं। कोतवाली पुलिस का कहना है कि कैदियों की गिरफ्तारी के प्रयास जारी हैं। ये बंदी पुलिस गिरफ्त से दूर क्च मोहम्मद असलम उर्फ राजू पुत्र बाबू खान निवासी सलावट मोहल्ला बेगूं जिला चित्तौडग़ढ़ क्च कैलाश पुत्र धन्नालाल निवासी पाडावास थाना बेगूं क्च ईश्वरसिंह पुत्र गोरादान चारण निवासी दसानी, थाना बघाना (नीमच) मध्यप्रदेश क्च कैलाश पुत्र रंगलाल जाट निवासी सराणा, थाना सरवाड़, जिला अजमेर क्च बंशीलाल पुत्र चोखाराम विश्नोई, निवासी जामनगर कापरड़ा थाना बिलाड़ा, जिला जोधपुर क्च किशोरकुमार पुत्र जीवनराम जाट निवासी गुढ़ा भगवानदास थाना पांचोड़ी, जिला नागौर क्च हेतराम पुत्र रमेशचंद्र सेन, निवासी पिनदारा, थाना बिसौंली जिला बदायूं उत्तरप्रदेश क्च प्रकाश उर्फ पप्पू पुत्र मोहनलाल विश्नोई निवासी खारा थाना करेड़ा, जिला जालौर क्च अख्तर पुत्र इस्माइल निवासी सिगार, थाना पुनाना, जिला मेवात हरियाणा नहीं मिल रहा स्थानीय पुलिस का सहयोग फरार कैदियों की गिरफ्तारी नहीं होने के पीछे माना जा रहा है कि संबंधित कैदियों के थाना क्षेत्र की पुलिस का भी सहयोग नहीं मिल पा रहा है। बीते दो साल से एक भी कैदी गिरफ्तार नहीं हो पाया है। सीजन में भागे एनडीपीएस के आरोपी फरवरी 2010 में जिस समय ये 23 कैदी भागे थे। उस समय अफीम के डोडों पर चीरा लगाकर अफीम निकालने का सीजन था। महत्वपूर्ण बात यह थी कि भागने वाले कैदियों में से अधिकांश एनडीपीएस एक्ट के मामलों में बंद थे। इन कैदियों की फरारी के बाद अफीम तस्करी के तीन सीजन बीत चुके हैं। पूरी संभावना है कि इस अवधि में काफी मात्रा में मादक पदार्थों की तस्करी की वारदातों को अंजाम दिया गया। ॥फरार कैदियों की गिरफ्तारी के लिए समय-समय पर टीमें भेजी जाती हैं। इस संबंध में कैदियों के थाना क्षेत्रों की पुलिस से भी नियमित संपर्क करने का प्रयास किया जाता है। बृजेशकुमार सोनी, डीएसपी चित्तौडग़ढ़ ढील-पोल |
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