Tuesday, January 21, 2014

duplicate medicine 20

तो क्या रैबीज के नकली इंजेक्शन बिक रहे हैं?

 
सबकी अपनी दलील 
अब दवा कारखाने तक पहुंचने में तीन बड़ी अड़चन 
7 महीने में 395 बार बात हुई राहुल और दीपक की 
क्षेत्र, समय और मात्रा से अनजान 
कोटा पुलिस की अब तक की कार्रवाई 
१७ साल में नहीं बनाई इतनी मोटी फाइल 
तीन जिलों का मामला, सरगना अब भी फरार 
नकली दवा मामले में हुआ था खुलासा, लेकिन अब तक नहीं हुई जांच, भास्कर ने पड़ताल की कि कहां हो रही है लापरवाही 
उदयपुर पुलिस के पास नकली दवा मामले का मामला पेंडिंग नहीं है। पुलिस ने न्यायालय में मामले में चालान पेश कर दिया है। - अजयपाल लांबा, उदयपुर एसपी 
हां, उस वक्त ललित अजरिया, सुभाषचंद्र और सुनिल मित्तल को उदयपुर में छापा मारने के लिए नियुक्त किया था। हमने साक्ष्य जुटाने की अपनी पूरी कोशिश की थी। बाद में क्या हुआ उसका मुझे पता नहीं। - डीके शृंगी, तत्कालीन स्टेट ड्रग कंट्रोलर 
13 दिसंबर 12 को दर्ज हुआ था कोटा में मुकदमा 
1000 पन्नों की हो चुकी है फाइल। 
कोटा पुलिस ने पूरी गंभीरता से जांच कर रही है। जल्द ही कारखाने के सरगना को सलाखों के पीछे पहुंचाकर रहेगी। कोटा पुलिस के जवान मोहम्मद इमरान और दयाराम आज भी आगरा में आरोपियों को पकडऩे के लिए लगातार काम कर रहे हैं। - हरिचरण मीणा, सीआई कोतवाली 
401 दिन की हो चुकी है कोटा पुलिस की जांच। 
ड्रग कंट्रोल विभाग की लापरवाही के चलते पुलिस जांच प्रभावित हो रही है। असली और नकली का भेद मालूम नहीं पडऩे से पुलिस किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पा रही। यह भी पता नहीं लगा पा रही कि शहर में रैबीज के इंजेक्शन कौन से क्षेत्र में, कितनी मात्रा में बिके और किस-किस ने किस-किस से खरीदे। 
1. मूल दस्तावेज नष्ट करना
नकली दवा की बात सामने आने के बाद ड्रग कंट्रोल विभाग के हैड ऑफिस जयपुर से कोटा, जयपुर और उदयपुर के लिए तीन टीमें गठित की गई। लेकिन, पुलिस का कहना है कि उदयपुर की ड्रग टीम की लापरवाही से भैया मेडिकल स्टोर से दवा के स्टॉक, बिल और आवक-जावक का पूरा रिकॉर्ड नष्ट कर दिया गया। जो पुलिस को नहीं मिल पाया। कम्प्यूटर से भी रिकॉर्ड को उड़ा दिया गया।
2. सीडी का नहीं खुलना
कोटा पुलिस के हाथ कुछ सीडी लगी हैं, जिससे पुलिस को काफी आशाएं हैं। लेकिन, सीडी का डाटा रिकवर नहीं हो पा रहा। पुलिस ने तीन बार कोशिश करने के बाद अब सीडी एफएसएल के सुपुर्द की है। इसमें कई राज दफन हैं।
3. कमजोर अभियोजन पक्ष
कोटा पुलिस ने राहुल को कोर्ट में पेशकर 4 दिनों का रिमांड मांगा। लेकिन, कोर्ट ने पुलिस को साक्ष्य के अभाव में रिमांड लेने की स्वीकृति ही नहीं दी। अगर, उदयपुर पुलिस साक्ष्य जुटा लेती तो कोटा पुलिस को यहां भी सफलता मिल जाती। 
ञ्च 2012 में 1 जून से दिसंबर तक की कॉल डिटेल निकाली।
ञ्च 2012 और 2013 में राहुल जहां-जहां ठहरा, सभी होटलों के बिल कलेक्ट किए।
ञ्च उदयपुर के भैया मेडिकल स्टोर के पड़ोसी एवं दूसरे कई व्यापारियों के बयान लिए।
ञ्च राहुल आने-जाने में जिस ट्रैवल्स का यूज करता था, उस नंदू ट्रैवल्स के बयान। 
कोटा पुलिस: कोटा पुलिस ने मुख्य आरोपी राहुल गर्ग को आगरा से गिरफ्तार किया। उसके बाद मोहित, कपिल, देवेश को गिरफ्तार कर लिया। इसके लिए पुलिस को कई-कई सप्ताह आगरा और उदयपुर में आरोपियों की तलाश करनी पड़ी। कोटा पुलिस का यह भी मानना है कि जल्द ही उस कारखाने तक पुलिस पहुंच जाएगी, जहां दवाइयां बनती थी। 
जयपुर पुलिस
मुखबिर की सूचना पर सबसे पहले जयपुर पुलिस ने उदयपुर की सप्लायर भैया मेडिकल स्टोर के मालिक दीपक अग्रवाल को जयपुर के एक होटल से गिरफ्तार किया। यह मामले की सबसे पहली गिरफ्तारी थी। फिर कोटा पुलिस की गिरफ्त से जयपुर पुलिस आरोपी राहुल को ले गई है और एक-एक करके सभी आरोपियों को जयपुर ले जाकर पूछताछ कर रही है। 
किससे हुई बात कितनी बार हुई कितने समय हुई
दीपक ने की राहुल से 203 कॉल्स 15,877 सेकंड
राहुल ने की दीपक से 192 कॉल्स 13,567 सेकंड
राहुल ने की देवेश से 81 कॉल्स 4,385 सेकंड
देवेश ने की राहुल से 89 कॉल्स 3,213 सेकंड 
उदयपुर पुलिस
प्रकरण में उदयपुर पुलिस सबसे अहम रोल अदा कर सकती थी, लेकिन लापरवाही देखिए, औषधि नियंत्रक विभाग द्वारा परिवाद पेश करने के बावजूद पुलिस ने कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया। विभाग के हैड ऑफिस जयपुर और उदयपुर एसपी के दखल के बाद उदयपुर पुलिस ने मामला दर्ज किया। जिसके बाद अभी तक उदयपुर पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। 
कपिल 
समकित जैनत्न कोटा
पिछले कुछ वर्षों में आपके किसी परिचित ने कुत्ते या बंदर के काटने पर रैबीज का इंजेक्शन लगवाया है, तो एक बार जांच जरूर करवा लें। हो सकता है इंजेक्शन नकली हो। यह खतरा तब और भी बढ़ जाता है, जब एक साल पहले पुलिस की चेतावनी के बावजूद ड्रग कंट्रोल विभाग इन इंजेक्शन को जांच ही नहीं पाया। मुश्किल यह है कि पुलिस भी केवल इतना ही पता लगा पाई कि शहर में रैबीज के नकली इंजेक्शन बेचे गए, लेकिन कब से कब तक, कितनी मात्रा में और कितने लोगों को ये उपलब्ध करवाए गए, ये जानकारी लाख कोशिश के बावजूद नहीं मिल पाई है। 2012 में डूफास्टोन नाम की नकली दवा बिकने का प्रकरण सामने आया था। दो साल बाद कोटा पुलिस मामले में 5 आरोपियों को पकड़ चुकी है, लेकिन नकली दवा गिरोह के सरगना तक अब भी नहीं पहुंच पाई है।
दो साल पहले शक, फिर सबूत: 2012 में एबोट इंडिया लिमिटेड कंपनी की टेबलेट डूफास्टोन नाम से पूरे प्रदेश में नकली दवा बिकने का मामला आया था। तब कोटा पुलिस को प्रथम दृष्टया शहर में रैबीज के नकली इंजेक्शन बिकने का शक हुआ था। पुलिस ने 9 फरवरी 2013 को ड्रग कंट्रोल विभाग को पत्र लिखकर कोटा में बिक रहे रैबीज के इंजेक्शनों की जांच करने के लिए कहा। लेकिन, विभाग ने आज तक इनकी किसी प्रकार की कोई जांच ही नहीं की। अब जब 8 जनवरी 2014 को कोटा पुलिस ने नकली दवाइयों की आपूर्ति करने वाले मुख्य आरोपी राहुल गर्ग को आगरा से गिरफ्तार किया। तब पूछताछ में राहुल ने रैबीज के इंजेक्शन काफी मात्रा में सप्लाई करना कबूला। जिससे पुलिस का शक पुख्ता हो गया, लेकिन पुलिस अभी तक यह पता ही नहीं लगा पाई की शहर में रैबीज के नकली इंजेक्शन बिक भी रहे हैं अथवा नहीं। 
देवेश 
राहुल 
मोहित, देवेश और कपिल दवा की सप्लाई राहुल को और वह दवा विक्रेताओं तक पहुंचाता था। दवा बनाने वाला अभी तक फरार है। 
मोहित 
गिरोह का सरगना
सीआई हरिचरण मीणा का कहना है उनकी १७ साल की नौकरी में यह पहला केस है जिसमें इतनी मोटी फाइल बन गई है, फिर भी जांच खिंचती जा रही है।
इन्वेस्टिगेशन
भास्कर 

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